अलंकार किसे कहते हैं | Alankar In Hindi, Alankar Ke Bhed | Alankar Ki Paribhasha

इस पोस्ट मे आपको अलंकार के बारे मे जानकारी मिलेगी। इसमे Alankar In Hindi, Alankar Ke Bhed, Alankar Ki Paribhasha जैसी जानकारी इस पोस्ट मे दी गई है।

मैने इस पोस्ट मे alankar in hindi pdf भी दी है जिसको आप free में download कर सकते है। तो चलिए जानते है alankar kise kahate hain.

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Alankar In Hindi

Contents

अलंकार किसे कहते हैं – Alankar In Hindi

अलंकार की परीभाषा – अंलकार शब्द अलम् धातु मे कार प्रत्यय लगाने से प्राप्त होता है। अलम् का अर्थ होता है आभूषण, तो जिस प्रकार आभूषणों से शरीर की सुन्दरता बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार अलंकारों से काव्य की शोभा बढ़ जाती है। तो इस प्रकार कह सकते है कि, काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते है।

Alankar Ke Bhed

हिंदी व्याकरण मे अलंकार के कुल चार भेद होते है, जो कि निम्नलिखित है-

  1. शब्दालंकार
  2. अर्थालंकार
  3. उभयालंकार
  4. पाश्चात्य अलंकार

शब्दालंकार (Shabdalankar In Hindi)

काव्य में शब्दगत चमत्कार को या फिर शब्द से जो प्रभाव किसी काव्य पर डाला जाता है, उसे शब्दालंकार कहते है। शब्दालंकार काव्य के शब्दों पर आश्रित होता है।

शब्दालंकार के भेद

शब्दालंकार के कुल मुख्य रूप से सात भेद होते है, जो निम्न प्रकार के है-

  1. अनुप्रास अलंकार
  2. यमक अलंकार
  3. श्लेष अलंकार
  4. वक्रोक्ति अलंकार
  5. पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार
  6. पुनरुक्तिवदाभास अलंकार
  7. वीप्सा अलंकार

अनुप्रास अलंकार (Anupras Alankar In Hindi)

जहाँ काव्य में एक या फिर अनेक व्यंजन वर्णों की पास-पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति हो, उसे अनुप्रास अलंकार कहते है। जैसे –

  • चारू चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल-थल में।

इस वाक्य मे च वर्ण की आवृत्ति क्रमानुसार हो रही है, तो यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार के पाँच भेद होते हैं, जो निम्न है।

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1) छेकानुप्रास अलंकार – जहाँ एक या अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति हो, वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण

रीझि-रीझि, रहसि रहसि हँसि हँसि उठे, साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।

इस वाक्य मे रीझि-रीझि, रहसि-रहसि, दई-दई, हँसि-हँसि में व्यंजन वर्णों की आवृति समान स्वरूप मे हुई है, तो यहाँ छेकानुप्रास अलंकार होगा।

2) वृत्यानुप्रास अलंकार – जहाँ एक या अनेक व्यंजनों की अनेक बार क्रमतः आवृत्ति हो, तो वहाँ पर वृत्यानुप्रास अलंकार होता है।

कंकन, किंकिनि, नूपुर, धुनि, सुनि

इस वाक्य मे की क्रमागत आवृत्ति पाँच बार हुई है अतः यहाँ पर वृत्यानुप्रास अलंकार होगा।

3) अन्त्यानुप्रास अलंकार – जहाँ पद के अन्त के एक ही वर्ण और एक ही स्वर की आवृत्ति हो, वहाँ पर अन्त्यानुप्रास अलंकार है।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।।

इसमें वाक्यों का अन्त आगर से हो रहा है तो यहाँ पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होगा।

4) श्रुत्यानुप्रास अलंकार – जहाँ एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने वाले वर्णों की आवृत्ति हो, तो वहाँ पर श्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है।

तुलसीदास सीदति निसिदिन देखत तुम्हार निठुराई।

इस वाक्य मे त, द, स, न एक ही उच्चारण स्थान से उच्चारित होने वाले वर्णों की कई बार आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार है।

5) लाटानुप्रास अलंकार – जहाँ समानार्थक शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो परन्तु अर्थ में अन्तर हों, वहाँ पर लाटानुप्रास अलंकार होता है।

पूत सपूत, तो क्यों धन संचय?
पूत कपूत, तो क्यों धन संचय?

इसमे पहले तथा दुसरे लाइन मे एक ही शब्द का प्रयोग हुआ है, पर उनका अर्थ दोनो वाक्यों मे भिन्न है, इसलिए यहाँ पर लाटानुप्रास अलंकार होगा।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण

  • बंदौ गुरु पद पदुम परगा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा। ( ‘प’ और ‘स’ की आवृत्ति हुई है)
  • तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। ( ‘त’ की आवृत्ति हुई है)
  • बरसत बारिद बून्द गहि। ( ‘ब’ की आवृत्ति हुई है)
  • चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में। ( ‘च’ की आवृत्ति हुई है)
  • कालिका सी किलकि कलेऊ देती काल को। ( ‘क’ की आवृत्ति हुई है)
  • कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी फेरि। ( क वर्ण की आवृति )
  • कल कानन कुंडल मोर पखा उर पे बनमाल विराजती है। ( ‘क’ की आवृत्ति हुई है )
  • चमक गई चपला चम चम। ( ‘च’ की आवृत्ति हुई है)
  • खेदी – खेदी खाती दीह दारुन दलन की। ( ‘ख’ और ‘द’ की आवृत्ति हुई है)
  • कालिंदी कूल कदंब की डारिन। ( ‘क’ की आवृत्ति हुई है )
  • मुदित महिपति मंदिर आए, सेवक सचिव सुमंत बुलाए। ( ‘म’ और ‘स’ की आवृत्ति हुई है)

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श्लेष अलंकार (Shlesh Alankar In Hindi)

श्लेष का शाब्दिक अर्थ है- चिपका हुआ। जहाँ एक शब्द जोड़े के रूप में उपस्थित न होकर अलग-अलग कथन मेें रहता है और हर बार उसका अर्थ अलग-अलग होता है, तो वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है। जैसे-

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।

इस पंक्ति में पानी का प्रयोग हुआ है जो की तीन अर्थ दे रहा है, मोती के अर्थ मे चमक, चून के अर्थ में जल और मानुष के अर्थ मे प्रतिष्ठा, तो यहाँ श्लेष अलंकार है।

श्लेष अलंकार के उदाहरण

पंक्तिपहचान
पी तुम्हारा मुख बास तरंग ।
आज बौरे भौरे सहकार ।।
बौरे – मस्त
बौरे – आम के फूल या मंजरी।
चिरंजीवौ जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर ।
को घटि या वृषभानुजा वे हलधर वे वीर ।।
वृषभानुजा – राधा , वृषभानुजा – बैल की बहन
हलधर – बलराम , हलधर – बैल
रो-रोकर सिसक-सिसक कर कहता मैं करुण कहानी ।
तुम सुमन नोचते, सुनते, करते जानी अनजानी ।।
सुमन – फूल
सुमन – सुंदर मन
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत की सोय ।
बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरो होय ।।
बारे – जलना और बचपन
बढे – बड़ा होने पर और बुझने पर
रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरे, मोती मानस चून।।
पानी – प्रतिष्ठा, चमक और जल
मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोई
जा तन की झाईं परै स्यामु हरित दुति होई।।
स्यामू – कृष्ण ,और सांवला
हरित – हरा रंग और प्रसन्न
सुबरन को ढूंढत फिरत, कवि व्यभिचारी चोर।सुबरन – सुन्दर शरीर और सोना
मधुबन की छाती को देखो
सुखी कितनी इसकी कलियाँ।
कलियाँ – फूल खिलने से पूर्व की अवस्था
कलियाँ – यौवन से पूर्व की अवस्था

यमक अलंकार (Yamak Alankar In Hindi)

यमक शब्द का अर्थ होता है, युग्मक या फिर जोड़ा। जहाँ एक शब्द या शब्द समूह एक साथ या फिर अलग-अलग पद में उनकी आवृत्ति हो, किन्तु उनका अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो, वहाँ पर यमक अलंकार होता है। यमक अलंकार मे शब्दों की दो बार आवृत्ति होती है।

जेते तुम तारे, तेते नभ में न तारे हैं

इस पंक्ति मे तारे शब्द दो बार आया है, परन्तु दोनो का अर्थ भिन्न-भिन्न है, जहाँ एक बार अर्थ तारण करना है तथा दूसरी बार उद्धार करना है। इसलिए यहाँ पर यमक अलंकार माना जाएगा।

यमक अलंकार के उदाहरण

पंक्तिपहचान
कहे कवि बेनी बेनी व्याल की चुराइ लीनी।बेनी – कवी
बेनी – चोटी
कनक कनक तै सौ गुनी मादकता अधिकाय ।
वा खाए बौराए जग या पाए बौराए ।।
कनक – सोना
कनक – धतूरा
काली घटा का घमंड घटा।घटा – बादल
घटा – कम होना
पच्छी परछिने ऐसे परे पर छीने बीर ।
तेरी बरछी ने बर छीने हे खलन के ।।
बरछी – तलवार
बर छीने – बल को हरने वाला ,
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
माला फेरत जुग भया मिटा न मनका फेर ।
कर का मनका डारि के मन का मनका फेर ।।
मनका – माला
मन का – मन से
पास ही रे , हीरे की खान
खोजता कहां और नादान?”
ही रे – हे / होना
हीरे – हिरा/रत्न
कबीरा सोई पीर है , जे जाने पर पीर ।
जे पर पीर न जानई , सो काफिर बेपीर ।।
पीर – धर्मगुरु
पीर – पीड़ा /दुःख
जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई।
दुर्दिन में आंसू बनकर आज बरसने आई ।।

वक्रोक्ति अलंकार (Vakrokti Alankar In Hindi)

जहाँ पर वक्ता द्वारा किसी भिन्न अभिप्राय से व्यक्त किए गए कथन का श्रोता अपने अनुसार भिन्न अर्थ की कल्पना कर लेता है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। इसके दो भेद है – श्लेष वक्रोक्ति और काकु वक्रोक्ति।

श्लेष वक्रोक्ति – जहाँ श्रोता, वक्ता के कथन से अपनी रुचि या परिस्थिति के अनुकूल भिन्न अर्थ ग्रहण करता है, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।

को तुम हो इत आये कहा,
घनश्याम हो तू कितू बरसों।

इस पंक्ति में घनश्याम के दो अर्थ हैं – श्री कृष्ण और काले बादल। जिससे श्रोता ने घनश्याम का अर्थ श्रीकृष्ण न ग्रहण न करके काले बाद के ग्रहण कर रहा है। इसलिए यहाँ पर श्लेष वक्रोक्ति अलंकार है।

काकु वक्रोक्ति – किसी कथन का कण्ठ की ध्वनि के कारण दूसरा अर्थ निकलता है, वहाँ काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है। जैसे –

उसने कहा जाओ मत, बैठो यहाँ।
मैने सुना जाओ, मत बैठो।।

इस पंक्ति में उच्चारण के कारण वक्ता ने कुछ और कहा और श्रोता ने कुछ और ही समझा। अतः यहाँ पर काकु वक्रोक्ति अलंकार है।

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पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार

पुनरुक्ति का मतलब पुनः दोहराना होता है। जब किसी काव्य में सौन्दर्यता उत्पन्न करने के लिए एक ही शब्द को दो बार वाक्य मे दोहराया जाता है, तो यहाँ पर पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार होता है। यहाँ शब्द की आवृत्ति दो बार तो होती है परन्तु मतलब मे कोई परिवर्तन नहीं होता है।

ठौर-ठौर विहार करती सुन्दरी सुरनारियाँ।

इस वाक्य मे ठौर-ठौर की आवृत्ति में पुनरूक्तिप्रकाश अलंकार है।

वीप्सा अलंकार (Vipsa Alankar In Hindi)

जब किसी काव्य में शोक, आश्चर्य, आदर, हर्ष, घृणा, मन के भाव आदि को प्रकट करने के लिए एक शब्द की पुनरावृत्ति होती है, तो यहाँ वीप्सा अलंकार होता है।

बार-बार गर्जन वर्षण है मूसलधार,
ह्रदय धाम लेता संसार सुन-सुन घोर वज्र हुंकार।

इस पंक्ति में बार-बार और सुन-सुन की पुनरावृ्ति हुई है, जिससे वर्ण और बादलों का प्रभाव और भी गहरा हो गया है। अतः यहाँ पर वीप्सा अलंकार है।

अर्थालंकार (Arthalankar In Hindi)

साहित्य मे जो अर्थगत चमत्कार को अर्थालंकार कहते है अर्थात् जहाँ पर अर्थ के कारण किसी काव्य के सौन्दर्य में वृद्धि होती है, वहाँ अर्थालंकार होता है। यहाँ ध्यान रहे अर्थालंकार काव्य के अर्थ पर आश्रित होते है।

अर्थालंकार के प्रमुख भेद निम्न है-

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उपमारूपक उत्प्रेक्षा
भ्रान्तिमानसन्देहदृष्टान्त
अतिश्योक्तिविभावनाअन्योक्ति
विरोधाभासविशेषोक्तिप्रतीप
अर्थान्तरन्यास

उपमा अलंकार (Upma Alankar In Hindi)

समान धर्म के आधार पर जिस एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार माना जाता है। हिंदी व्याकरण मे उपमा के चार अंग होते है-

  • उपमेय – वर्णनीय वस्तु जिसकी उपमा या फिर समानता दी जाती है, उस वस्तु को उपमेय कहते है। जैसे-
    • सरीता का मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है। (इस वाक्य मे मुख की चन्द्रमा से समानता बताई गई है, अतः मुख उपमेय है।)
  • उपमान – जिससे उपमेय की समानता या तुलना की जाती है, उसे उपमान कहते है।
    • मुख की समानता चन्द्रमा से की गी है, अतः उपमान चन्द्रमा है।
  • साधारण धर्म – जिस गुण के लिए उपमा दी जाती है, उसे साधारण धर्म कहते हैं।
    • तो उदाहरण से ज्ञात होता है कि सुन्दरता के लिए उपमा दी गई है, अतः सुन्दरता साधारण धर्म है।
  • वाचक शब्द – जिस शब्द के द्वारा या फिर सहायता से उपमा दी जाती है, उसे वाचक शब्द कहते हैं।
    • उदाहरण से ज्ञात है कि, समान शब्द वाचक है। इसी तरह जैसा, सा, ऐसा, सदृश आदि भी वाचक होते है।

उपमा अलंकार के भेद (Upma Ke Bhed)

1) पूर्णोपमा – जहाँ उपमा के चार अंग विद्यामान रहते है, वहाँ पर पूर्णोपमा अलंकार होता है। जैसे –

प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे।

इस काव्य पंक्ति में, प्रातः कालीन नभ उपमेय है, शंख उपमान है, नीला साधारण धर्ण है और जैसे वाचक शब्द है। तो यहाँ चारो अंग है, इसलिए यहाँ पर पूर्णोपमा अलंकार है।

2) लुप्तोपमा – जहाँ उपमा के एक या अनेक अंगों का अभाव होता है, वहाँ पे लुप्तोपमा अलंकार होता है। जैसे –

मखमल के झूले पड़े, हाथी सा टीला।

3) मालोपमा – जिस किसी कथन में एक ही उपमेय की अनेक अपमान होते है, वहाँ पर मलोपमा अलंकार होता है। जैसे-

काम-सा रूप, प्रताप दिनेश-सा
सोम सा सील है राम महीप का।

इसमे राम उपमेय है, किन्तु उपमान, साधारण धर्म और वाचक शब्द तीन हैं- काम सा रूप, दिनेश सा प्रताप और सोम सा शील। अतः यहाँ पर मालोपमा माना जाएगा।

उपमा अलंकार के उदाहरण (Upma Alankar Ke Udaharan)

पंक्तिपहचान
चाँद की सी उजली जालीचांद के समान उजला बताया गया है।
लघु तरनि हंसिनी सी सुन्दरनदी के तट को हंस के समान बताया गया है।
सिंधु सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साहनिर्वाचित होने के उत्साह को सिंधु नदी के समान बताया गया है।
उतर रही है संध्या सुंदरी परी सीसंध्या को परी के रूप में चित्रित किया गया है।
मखमल के झूले पड़े हाथी सा टीलाटीले की तुलना हाथी जानवर से की गई है।
हाय फूल सी कोमल बच्ची , हुई राख की ढेरी थी।बच्ची की कोमलता फूल के समान की गई है।
वह दीपशिखा सी शांत भाव में लीनदीप से उठने वाली ज्वाला के समान शांत बताया गया है।

रूपक अलंकार (Rupak Alankar In Hindi)

जहाँ उपमेय में उपमान का निषेधरहित आरोप हो अर्थात् उपमेय और उपमान को एक रूप कह दिया जाए, वहाँ पर रूपक अलंकार होता है। जैसे –

पायो जी मैने राम रतन धन पायो।

उपर्युक्त पंक्ति में राम रतन को ही धन कहा गया है। राम रतन उपमेय पर धन के उपमान का आरोप है तथा दोनों मं भिन्नता है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

रूपक अलंकार के उदाहरण

पंक्तिपहचान
वन शारदी चंद्रिका-चादर ओढ़े।यहाँ चंद्रिका उपमेय में चादर उपमान का आरोप हुआ है, के कारण रूपक अलंकार माना गया है।
हमारे हरि-हारिल की लकरी।ईश्वर को लकड़ी के रूप में बताया है, जिस पर प्रेम का कोई असर नहीं है।
चरण-कमल बन्दों हरि राई।यहाँ चरण उपमेय तथा कमल उपमान में अभेद समानता बताई गई है, जिसके कारण रूपक अलंकार होगा।
मंद हंसी मुखचंद जुन्हाई।मुख को चांद रूपी माना गया है।
पायो जी मैंने राम-रत्न धन पायो
ईस भजनु सारथी-सुजाना , बिरति-वर्म संतोष कृपाना।
प्रश्न चिन्हों में उठी हैं भाग्य-सागर की हिलोंरे।
राम नाम मनि-दीप धरु , जीह देहरी दवार
एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास। ।
उदित उदय गिरि-मंच पर रघुबर-बाल पतंग
बिकसे संत-सरोज सब हरषे लोचन-भृंग। ।
पहाड़ रूपी मंच ,बाल पतंग रूपी रघुवर ,कमल रूपी संत ,लोचन रूपी भंवरे बताया गया है।
मैया मैं तो चंद्र-खिलौना लैहों।यहां चंद्रमा उपमेय में खिलौना उपमान का आरोप है, जिसके कारण रूपक अलंकार माना गया है।
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते ?

उत्प्रेक्षा अलंकार (Utpreksha Alankar In Hindi)

जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें मानो, जानो, मनु, जनु, इव जसे वाचक शब्दों का प्रयोग होता है। उत्प्रेक्षा के तीन भेद होते है- वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा। जैसे –

सिर फट गया उसका वहीं।
मानो अरुण रंग का घड़ा हो।।

इस पंक्ति से सिर के लाल रंग का घड़ा होने की कल्पना की जा रही है। उपमेय में उपान के होने की कल्पना की जा रही है। अतः यहाँ पर उत्प्रेक्ष अलंकार है।

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण

पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।।


बहुत काली सिल जरा-से,
लाल केसर-से कि जैसे धुल गई हो।


मानहु बिधि तन-अच्छ-छबि, स्वच्छ राखिबैं काज।


पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से।
मानो झूम रहे हों तरु भी, मंद पवन के झौंकों से।।


झुक कर मैंने पूछ लिया ,खा गया मानो झटका।


भई मुदित सब ग्राम वधूटीं_रंकन्ह राय रासि जनु लूटी।


चमचमात चंचल नयन_बिच घूँघट पट झीन।
मानहु सुरसरिता विमल_जल बिछुरत जुग मीन ।।


उस काल मारे क्रोध के_तनु कॉपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से_सोता हुआ सागर जगा।।


फुले हैं कुमुद फूली, मालती सघन बन
फूलि रहे तारे मनो-मोती अनगिन हैं।


सोहत ओढ़े पीत पट , स्याम सलोने गात।
मनो नीलमणि सैल पर , आतप पर्यौ प्रभात ।।


मानौ भीत जानि महासीत, तें पसारि पानि मानो
छतियाँ की छाँह राख्यों, पावक छिपाय के।

पंक्तिपहचान
पाहुन ज्यों आए हो गांव में शहर के
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के। ।
जिस प्रकार मेहमान शहर का गांव में सज संवर कर आता है उसी प्रकार बादल संवर कर आने का बोध हो रहा है।
कहती हुई यों उतरा के नेत्र जल से भर गए
हिम के कणों से पूर्ण मानों हो गए पंकज नए।
कहते हुए उतरा की आंखों से अश्रु की धारा इस प्रकार बहने लगी मानो जैसे हिम के कर्ण हो जिससे कमल धूल कर नए से प्रतीत हो रहे हों ।
सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात
मनहूँ नीलमणि सैल पर आपत परयो प्रभात। ।
कृष्ण की सुंदरताम श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की औक पितांबर में सुबह की धूप जैसा प्रतीत होना माना गया है।
सिर फट गया उसका वहीं।
मानो अरुण रंग का घड़ा हो।।
उस वक्त मारे क्रोध के तनु कांपने लगा ,
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा ।
क्रोध के मारे इस प्रकार शरीर कांपने लगा मानो जैसे, सोता हुआ सागर प्रलय बचाने के लिए जागा हो।

भ्रान्तिमान अलंकार (Bhrantiman Alankar In Hindi)

जिस वाक्य में समानता के कारण एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो, वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार होता है। जैसे-

जान स्याम घन स्याम को, नाच उठे वन-मोर।

इस पंक्ति में श्री कृष्ण को देखकर, साँवलेपन के कारण वन के मोर को काले बादल का भ्रम हो गया। तो इस भ्रम के कारण यहाँ पर भ्राँतिमान अलंकार होगा।

भ्रान्तिमान अलंकार के उदाहरण

बेसर मोती दुति झलक , परी अधर पर आनि।
पट पोंछति चूनो समुझि , नारी निपट अयानि।।


ओस बिन्दु चुग रही, हंसिनी मोती उनको जान।


चाहत चकोर सूर, ऒर दृग छोर करि।


फिरत घरन नूतन पथिक , बारी निष्ट अयानि।
फूल्यो देखि पलास वन , समुहे समुझि दवागि।।


किंशुका कलिका जानकर , अलि गिरता शुक चोंच पर।
शुक मुख में धरता उसे , जामुन का फल समझकर।।


चन्द अकास को वास विहाइ कै,
आजु यहाँ कहाँ आइ उयो है?


चंद के भरम होत, मोड़ है कुमुदनी।


भ्रमर परत शुक तुण्ड पर , जानत फूल पलास।
शुक ताको पकरन चहत , जम्बु फल की आस।।


नाच अचानक ही उठे , बिनु पावस वन मोर।
जानत ही नंदित करी , यह दिसि नंद किशोर।।


कपि करि हृदय विचारि , दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जानि अशोक अंगार , सीय हरषि उठि कर गहेउ।।


बिल विचार प्रविशन लग्यो , नाग शुँड में व्याल।
काली ईख समझकर , उठा लियो तत्काल।।


सन्देह अलंकार (Sandeh Alankar In Hindi)

जब अति सादृश्य के कारण उपमेय और उपमान में अनिश्चय की स्थिति बनी हो या फिर जब उपमेय से अन्य किसी वस्तु का संशय उत्पन्न हो रहा हो, तो वहाँ पर सन्देह अलंकार होता है। जैसे-

सारी बीच नारी है, कि नारी बीच सारी है।
सारी ही की नारी है, कि नारी ही की सारी है।

इस पंक्ति में नारी और साड़ी में सन्देह बना हुआ है। इस कारण यहाँ पर निश्चय न होने के कारण यह सन्देह अलंकार होगा।

सन्देह अलंकार के उदाहरण

मद भरे ये नलिन-नयन मलीन हैं ।
अल्प जल में या, विकल लघु मीन हैं।।


कहूँ मानवी यदि, मैं तुमको तो ऐसा संकोच कहा,
कहू दानवी तो उसमें है, यह लादण्य की लोच कहा ?


है उदित पूर्णेन्दु, वह अधवा किसी,
कामिनी के बदन की बिखरी हटा ।


यह काया है या, शेष उसी की छाया,
क्षण भर उनकी कुछ, नहीं समझ में आया।


दृष्टान्त अलंकार (Drishtant Alankar In HIndi)

जिस पंक्ति में किसी बात को स्पष्ट करने के लिए सादृश्यमूलक दृष्टान्त अर्थात् उदाहरण सहित प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है। तो वहाँ पर दृष्टान्त अलंकार होता है। जैसे-

जो रहीम उत्तम, प्रकृति का कर सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

इस वाक्य मे आप देख रहे हैं कि, पहली पंक्ति की बात को दूसरी पंक्ति के उदाहरण के सात प्रस्तुत किया गया है, अतः यहाँ पर दृष्टान्त अलंकार माना जाएगा।

दृष्टान्त अलंकार का उदाहरण

एक म्यान में दो तलवारें , कभी नहीं रह सकती हैं।
किसी और पर प्रेम नारियाँ , पति का क्या सह सकती है।।


सठ सुधरहिं सत संगत पाई ।
पारस परिस कुधातु सुहाई ।


एक म्यान में दो तलवारें , कभी नहीं रह सकती हैं।
किसी और पर प्रेम नारियाँ , पति का क्या सह सकती है।।


पापी मनुज भी आज, मुख से राम राम निकालते।
देख भेड़िये भी आज, आंशू निकालते।


अतिशयोक्ति अलंकार (Atishyokti Alankar In Hindi)

जहाँ किसी विषयवस्तु को या फिर लोकमर्यादा के विरुद्ध बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है, तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे-

हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
सारी लंका जरि गई, गए निशाचर भाग।।

इसमे हनुमान जी के पूँछ मे आग लगाने के बाद की वर्णन बढ़ा-चढ़ाकर बात कही गई है। इस कारण यह अतिशयोक्ति अलंकार है।

अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण

तारा सो तरनि धूरि-धारा मैं लगत जिमि।
थारा पर पारा-पारावार यो हलत है।।


देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।।


भूप सहस दस एकहि बारा,
लगे उठावन टरत न टारा।


बाधा था विधु को_किसने इन काली जंजीरों से ।
मणि वाले फणियों का_मुख क्यों भरा हुआ था हीरों से।।


जिस वीरता से शत्रुओं का_सामना उसने किया।
असमर्थ हो उसके कथन_में मौन वाणी ने लिया।।


आगे नदिया पड़ी अपार_घोड़ा कैसे उतरे पार ।
राणा ने सोचा इस पार_तब तक चेतक था उस पार ।।


अन्योक्ति अलंकार (Anyokti Alankar In Hindi)

जिस पंक्ति में वस्तु या व्यक्ति को लक्ष्य कर कही जाने वाली बात दूसरे के लिेए कही जाती है, वहाँ पर अन्योक्ति अलंकार होता है। जैसे-

फूलों के आसपास रहते हैं। फिर भी काँटे उदास रहते हैं।।

इस वाक्य मे सब सही बात होते हुए भी दुःखी प्राणियों का वर्णन किया गया है। अतः यहाँ पर अन्योक्ति अलंकार होगा।

अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण

जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीती बहार।
अब अली रही गुलाब में, अपत कंटीली डार।।


भयो सरित पति सलिल पति , अरु रतनन की खानि।
कहा बड़ाई समुद्र की , जु पै न पीवत पानि।।


अति अगाधु अति, औथरौ नदी कूप सरु बाइ।।


खोता कुछ भी नहीं, यहां पर केवल जिल्द बदली पोथी।।


माली आवत देखकर कलियाँ करिहैं पुकार ,
फूली-फूली चुनि लियो काल्ह हमारी बार।।


जिन पै तै लै आए ऊधो ,
तिनहीं के पेट समै है।।


नहीं पराग नहीं मधुर मधु ,नहिं विकास इहि काल।
अली कली ही सौं बिंध्यों ,आगे कौन हवाल।।


विभावना अलंकार (Vibhavana Alankar In Hindi)

जिस वाक्य मे कारण के बिना ही कार्य को पूर्ण होने का वर्णन होता है, वहाँ पर विभावना अलंकार होता है। जैसे-

बिनु पग चलइ सुनइ बिनु काना,कर बिनु करम करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी, बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी।।

इस पंक्ति मे बताया गया है, कानों के बिना सुनना, पैरों के बिना चलना, बिना हाथों के विविध कार्य करना आदि का विना वक्ता के होने का उल्लेख मिल रहा है, इस नाते यहाँ पर विभावना अलंकार होगा।

विभावना अलंकार के उदाहरण

राजभवन को छोड़_कृष्ण थे चले गये।
तेज चमकता था_उनका फिर भी भास्वर।।


मूक होय वाचाल पंगु_चढ़ै गिरिवर गहन।
जासु कृपा सु दयाल द्रबहु_सकल कलिमलि दहन ।।


बिन घनश्याम धाम-धाम बृजमण्डल में ऊधौ।
नित बस्ती बहार बरषा की है।।


विरोधाभाष अलंकार (Virodhabhas Alankar In Hindi)

जहाँ पर वास्तविक विरोध न होने पर भी विरोध का आभास होता है, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। जैसे-

या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोय।
ज्यों ज्यों बूड़ै स्याम रंग, त्यों-त्यों उजलों होय।।

इस पंक्ति मे कवि कहना चाहते हैं कि हमारे अनुरागी मन की गति किसी के द्वारा नहीं समझी जा सकती है, क्योंकि यह जैसे-जैसे यह श्री कृष्ण की भक्ति मे डूबता है वैसे-वैसे ही, उस व्यक्ति के विकार दूर हो जाते है।

तो यहाँ विरोध इस बात का है कि कोई काले रंग का व्यक्ति उज्ज्वल कैसे हो सकता है। इस कारण यहाँ पर विरोधाभाण अलंकार होगा।

विशेषोक्ति अलंकार (Visheshokti Alankar In Hindi)

जिस वाक्य में कारण के रहने पर भी कार्य का होना नहीं पाया जात है। वहाँ पर निशेषोक्ति अलंकार होता है। जैसे-

दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी।
नीर भरे नित प्रति रहै, तऊ न प्यास बुझाई।।

इस पंक्ति मे कारण तो है कि वर्षा हो रही है, पर प्यास का बुझना नहीं हो रहा है। इसलिए यहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होगा।

प्रतीप अलंकार (Prateep Alankar In Hindi)

प्रतीप अलंकार का अर्थ होता है- विपरीत या उल्टा। जिस पंक्ति मे उपमेय का कथन उपमान के रूप में तथा उपमान का उपमेय के ही रूप में प्राप्त होता है। वहाँ पर प्रतीप अलंकार होता है। जैसे-

उतरि नहाए जमुन जल, जो शरीर सम स्याम।

तो इस पंक्ति में यमुना के श्याम जल को रामचन्द्र के शरीर के समान देकर उसे उपमेय बना दिया गया है। अतः इसे प्रतीप अलंकार कहते है।

अर्थान्तरन्यास अलंकार (Arthantarnyas Alankar In Hindi)

जिस किसी सामान्य वाक्य का किसी विशेष बात से तथा विशेष बात का किसी सामान्य वाक्य से समर्थन होना पाया जाता है। वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है। जैसे-

बड़ें न हूजे गुनन बिनु , निरद बड़ाई पाय।
कहत धतूरे सों कनक , गहनों गढ़ा न जाय।।

उभयालंकार (Ubhaya Alankar In Hindi)

जब दो शब्द व जो अर्थ मिलकर आपस मे चमत्कार की वृद्धि करते हैं, तो उसे उभयालंकार कहते है। उभयालंकार के दो भेद होते है-

  1. संकर अलंकार
  2. संसृष्टि अलंकार

संकर अलंकार- जहाँ दो या उससे अधिक अलंकार आपस मे नीर-क्षीर के रूप मे आपस मे घुले-मिले रहते हैं, वहाँ पर उसे संकर अलंकार कहा जाता है। जैसे-

सठ सुधरहिं सत संगति पाई।
पारस-परम कुधातु सुहाई।।

यहाँ पारस-परस मे अनुप्रास तथा यमक दो अलंकार मिले है। इस प्रकार यहाँ पर संकर अलंकार है।

संसृष्टि अलंकार- जहाँ दो अलंकार मिलने पर भी उनकी पहचान उस पंक्ति मे भी हो जाती है, तो उसे संसृष्टि अलंकार कहते है।

भूपति भवनु सुभायँ सुहाव। सुरपति सदनु न परतर पावा।।
मनिमय रचित चारु चौबारे। जनु रतिपति निज हाथ सँवारे।।

पाश्चात्य अलंकार (Paschatya Alankar In Hindi)

हिंदी व्याकरण मे पहले पाश्चात्य अलंकार नहीं था, बल्कि हिन्दी साहित्य के ऊपर पाश्चात्य का प्रभाव पड़ने के बाद से ही पाश्चात्य अलंकार का समावेश हिंदी व्याकरण मे हुआ। प्रमुख पाश्चात्य अलंकार मानवीकरण, ध्वन्यात्मकता, भावोक्ति और विरोध चमत्कार है।

मानवीकरण अलंकार (Manvikaran Alankar In Hindi)

जिस पंक्ति मे किसी निर्जीव वस्तु, पेड़-पौधे, बादल आदि का मानवीकरण कर दिया जाता है और उसका सजीव की भाँति प्रयोग होता है, उसे मानवीकरण अलंकार कहते है। जैसे-

फूल हँसे कलियाँ मुसकाई

मानवीकरण अलंकरा के उदाहरण

नदी-तट से लौटती गंगा नहा कर,
सुवासित भीगी हवाएं सदा पावन।।


उषा सुनहले तीर बरसती।
जय लक्ष्मी-सी उदित हुई।।


बीती विभावरी जाग री
अंबर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नागरी।


वृक्षों की टहनियां बादल से बातें करती है।।


जगी वनस्पतियाँ अलसाई, मुह धोया शीतल जल से।।


अनुराग भरे तारों ने आंखें खोली।
संध्या सुंदरी परी-सी नीचे उतरी।।


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इसे भी जाने-

Alankar In Hindi FAQ

अलंकार किसे कहते है?

जिस प्रकार आभूषणों से शरीर की सुन्दरता बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार अलंकारों से काव्य की शोभा बढ़ती है। तो इस प्रकार कह सकते है कि, काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को ही अलंकार कहते है।

उपमा अलंकार की परिभाषा क्या है?

जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु से की जाती है तो वहाँ पर उपमा अलंकार होता है।

Rupak Alankar Kise Kahate Hain?

जहाँ उपमेय में उपमान का निषेधरहित आरोप होता है अर्थात उपमेय और उपमान को एक रूप मे कर दिया जाता है, वहाँ पर रूपक अलंकार होता है।

उपमा अलंकार के भेद कितने हैं?

उपमा अलंकार के कुल तीन भेद होते हैं-
1) पूर्णोपमा
2) लुप्तोपमा
3) मालोपमा

Alankar ke kitne bhed hote hai?

हिंदी व्याकरण मे अलंकार के कुल चार भेद होते है-
1. शब्दालंकार
2. अर्थालंकार
3. उभयालंकार
4. पाश्चात्य अलंकार

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