इस पोस्ट मे मैं, आपको Ras Ke Prakar, Ras Ki Paribhasha With Examples Hindi मे बताऊंगा। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको रस क्या है, रस के प्रकार तथा रस की परिभाषा के बारे मे सबकुछ पता चल जाएगा। यह आपकी आने वाली परीक्षा की तैयारी मे काफी मदद करेगा।
Ras Ki Paribhasha
रस (Sentiments) का मतलब आनन्द होता है। किसी भी साहित्य, काव्य आदि के पढ़ने, नाटक, सुनने आदि से मन मे जो आनन्द के भाव की अनुभूति होती है, वही रस होता है। इस तरह समक्ष सकते है कि, रस की किसी काव्य व साहित्य मे रूप के बारे मे बताता है कि उसे सुनने से क्रोध होगा, दुःख होगा, हँसी होगी आदि।
Ras Ke Ang Kitne Hote Hain
अगर रस के अंग व अव्यव की बात करें तो, रस के मुख्य रुप से चार अंग व भेद माने जाते है-
- स्थायी भाव
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी व व्यभिचारी भाव
स्थायी भाव किसे कहते है?
इसे भाव की प्रधानता भी कहा जाता है। हृदय मे मूलरूप से रहने वाले भावों को ही स्थायी भाव कहते हैं। स्थायी भाव को ही रसों का आधार कहा जाता है। सामान्यतः स्थायी भावों की संख्या 9 मानी गई है, परन्तु बाद मे 2 स्थायी भावों को और जोड़ दिया गया। 9 स्थायी भाव होने के कारण इसे नवरस भी कहते है।
रस के प्रकार
रस | स्थायी भाव |
श्रृंगार रस | रति |
हास्य रस | हँसी |
वीर रस | उत्साह |
करुण रस | शोक व दुःख |
भयानक रस | भय |
रौद्र रस | क्रोध |
अद्भुत रस | विस्यम या आश्चर्य |
शान्त रस | निर्वेद |
बीसत्स रस | घृणा व जुुगुप्सा |
भक्ति रस | देव रति व अनुराग |
वत्सल्य रस | वात्सल्य रति |
विभाव किसे कहते है?
जो वस्तु, व्यक्ति या परिस्थितियाँ स्थायी भाव को जागृत करती है, वही विभाव कहलाती है। यह दो प्रकार का होता है- 1. आलम्बन विभाव, 2. उद्दीपन विभाव
- आलम्बन विभाव- जिन विषयों पर आलम्बित होकर स्थायी भाव उत्पन्न हो, उसे आलम्बन विभाव कहते है। जैसे- नायक-नायिका।
- उद्दीपन विभाव- स्थावी भावों को तीव्र या तेज करने वाले कारण को ही उद्दीपन विभाव कहते है। जैसे- देश-काल, चाँदनी।
इसे भी देखें- uniform civil code in hindi
अनुभाव किसे कहते है?
मन के भावों को प्रकट करने वाले विकार को ही, अनुभाव कहते है। ये कुल 8 होते है-
1. स्तम्भ | 2. स्वेद | 3. रोमांच | 4. स्वर-भंग |
5. अश्रु | 6. कम्य | 7. प्रलय | 8. विवर्णता |
संचारी भाव किसे कहते है?
मन मे उत्पन्न अस्थिर विकारों को ही संचारी भाव कहा जाता है। इनकी कुछ संख्या 33 है-
विषाद | हर्ष | त्रास | ग्लानि | चिन्ता |
लज्जा | शंका | मोह | चपलता | असूया |
अमर्ष | गर्व | उग्रता | उत्सुकता | दीनता |
आवेग | जड़ता | व्याधि | धृति | मति |
विबोध | वितर्क | श्रम | आलस्य | निद्रा |
मरण | निर्वेद | स्वप्न | स्मृति | मद |
उन्माद | अपस्मार | अवहित्था |
Ras Ke Prakar In Hindi With Examples
हिन्दी मे रसों की संख्या को लेकर काफी मतभेद रहा है। भरत मुनि ने रसों की संख्या 8 मानी है, जबकि पण्डितराज जगन्नाथ ने रसों की संख्या 9 मानी है तथा कुछ विद्वानों ने रसों की संख्या 11 मानी है। तो इस कारण मै आपको कुछ 11 रसों के बारे मे बातऊंगा। जिससे आपको रस के प्रकार के बारे मे कोई समस्या बाद मे आ आए।
श्रृंगार रस (Shringar Ras Ki Paribhasha)
श्रंगार रस का आधार स्त्री-पुरुण का आपस मे आकर्षण है, जहाँ सुख और दुःख दोनों प्रकार की अनुभूतियाँ होती है। श्रंगार रस कहलाता है। इसका स्थायी भाव रति होती है। आचार्य भोजराज ने इसे रसराज कहा है। इसके कुल दो भेद है
- संयोग श्रंगार- जहाँ नायक-नायिका का मिलन संयोग से होता है, वहाँ संयोग श्रृंगार रस होता है।
- वियोग श्रृंगार- जहाँ नायक-नायिका मे वियोग का भाव होता है, वहाँ वियोग श्रृंगार होता है।
Shringar Ras Ke Udaharan
“कहत, नटत, रीझत, खीझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरै भौन मैं करत हैं, नैनन् हीं सब बात।”
यह संयोग श्रंगार का है। यहाँ नायक-नायिका के प्रेमपूर्ण चेष्टाओं का वर्णन किया गया है।
“मधुबन तुम क्यों रहत हरे, बिरह बियोग स्पाम,
सुन्दर के ठाढ़े क्यौं न जरें।”
यहाँ कृष्ण के वियोग मे राधा के मनोभावों का वर्णन किया गया है। यह वियोग श्रंगार है।
इसे भी देखें- UAPA Full Form
हास्य रस (Hasya Ras Ki Paribhasha)
जब किसा व्यक्ति व मनुष्य के, विकृत क्रियाकलाप, हाव-भाव, वेशभूषा आदि को देख कर मन मे जो उल्लास उत्पन्न होता है वही हास्य रस कहलाता है। इसका स्थायी भाव हँसी होता है।
Hasya Ras Ke Udaharan
“जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहि न विलोकी भूली।।
पुनि पुनि मुनि उकसहिं अनुलाहीं। देखि दसा हरिगन मुसकाहीं।।”
“तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राम मे मारा गोता,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।।”
करुण रस (Karun Ras Ki Paribhasha)
जब किसी के दूर चले जाने, कोई हानि, वस्तु की हानि, बिछड़ना किसी से, प्रेम मे बिछड़ना, किसी का आजीवन दूर चले जाने पर मन मे जो वेदना व हृदय मे जो वेदना या दुःख का भाव उत्पन्न होता है। उसे ही करुण रस कहा जाता है। इसका स्थायी भव शोक है।
Karun Ras Ke Udaharan
“सोक बिकल सब रोवहिं रानी। रूपु सीलु बलु तेजु बखानी।।
करहिं बिलाप अनेक प्रकारा। परहिं भूमितल बारहिं बारा।।”
Veer Ras Ki Paribhasha ( वीर रस)
जब कोई काम करने से या किसी को पराजित करने से या फिर कठिन कार्य करने से मन मे जो जोस का भाव पैदा होता है, उसे ही वीर रस करते है। इस रस मे शत्रु पर विजय प्राप्त करने का भाव व्यक्त होता है। उत्साह इसका स्थायी भाव होता है।
Veer Ras Ke Udaharan
“वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं।।”
“मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत मानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानो मुझे।।
हे सारथे! द्रोण क्या? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझसे कभी।।”
रोद्र रस (Raudra Ras Ki Paribhasha)
विरोधी पक्ष द्वारा किसी व्यक्ति, समाज, देश या धर्म का अपमान या अपकार करने से उसकी प्रतिक्रिया मे जो गुस्से की भावना उत्पन्न होती है, उसे ही रौद्र रस कहा जाता है। इसका स्थायी भाव क्रोध है।
Raudra Ras Ke Udaharan
“श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे।।
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खड़े।।”
भयानक रस (Bhayanak Ras Ki Paribhasha)
जब मन मे व्याकुलता किसी विभत्स घटना, किसी की कमी, भयानक वस्तु, समय, जीव आदि को देख कर मन मे जो भय की भावना उत्पन्न होती है, उसे ही भयानक रस कहते है। इसका स्थायी भाव भय होता है।
Bhayanak Ras Ke Udaharan
“उधर गरजती सुंधु लहरियाँ कुटिल काल के जालों सी।
चली आ रहीं फेन उगलती फन फैलाये व्यालों-सी।।”
“एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही, परयो मूर्च्छा खाप।।”
इसे भी देखें- Train Wala Game
वीभत्स रस (Vibhats Ras Ki Paribhasha)
जब व्यक्ति के मन मे किसी व्यक्ति, वस्तु, आदि को देख कर मन मे घृणा का भावना उत्पन्न होती है या उसकी बारे मे विचार करने से ही घृणा उत्पन्न होती है, तो उसे वीभत्स रस कहते है। इसका स्थायी भाव जुगुप्सा होता है।
Vibhats Ras Ke Udaharan
“सिर पर बैठ्यो काग आंख दोउ खात निकारत।
खींचत जीबहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत।।
गीध जाँघ को खोदि खोदि कै मांस उपारत।
स्वान आंगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।।”
Adbhut Ras Ki Paribhasha (अद्भुत रस)
जब किसी आश्चर्यजनक, अलौकिक, आभा व दृश्य या वस्तु को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता है औन मन देख कर अचंभित हो जाता है, तो उसे ही अद्भुत रस कहते है। इसका स्थायी भाव विस्मय है।
Adbhut Ras Ke Udaharan
“अम्बर में कुन्तल जाल देख, पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख, मेरा स्वरूप विकराल देख,
सब जन्म मुझी से पाते है फिर लौट मुझी में आते है।”
“अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गद्गद् वचन, विकसित दृग पुलकातु।।”
Shant Ras Ki Paribhasha (शान्त रस)
जहाँ न दुःख हो, न द्वेष, मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो, तथा जब तत्व ज्ञान की प्राप्ति होती है अथवा संसार से वौराग्य होने पर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मिलने वाली मन की शांति को ही, शान्त रस कहते है। इसका स्थायी भाव निर्वेद है।
Shant Ras Ke Udaharan
“मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना।।”
“सुत वनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबही ते।
अन्तहिं तोहि तजेंगे पामर! तू न तजै अबही ते।।
अब नाथहिं अनुराग जाग जड़, त्यागु दुरदसा जीते।
बुझे न काम अमिनि ‘तुलसी’ कहुँ विषय भोग बहु घी ते।।”
वात्सल्य रस (Vatsalya Ras Ki Paribhasha)
जहाँ छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति उनके माता-पिता तथा सगे-संबंधियों के द्वारा दिया जाने वाला प्यार व स्नेह ही वात्सल्य रस कहलाता है। इसका स्थायी भाव वात्सल्य यति होता है।
Vatsalya Ras Ke Udaharan
“किलकत कान्ह घुटरुवन आवत।
मनिमय कनक नंद के आंगन बिम्ब पकरिवे घावत।।”
भक्ति रस (Bhakti Ras Ki Paribhasha)
जहाँ ईश्वर के भक्ति व प्रेम मे लीन होने का भाव आता है वहाँ भक्ति रस होता है। यह रस शान्त रस से भिन्न होता है। इसका स्थायी भाव देव रति होता है।
Bhakti Ras Ka Udaharan
“राम जपु, पाम जपु, पाम जपु बावरे।
घोर भव नीर-निधि, नाम निज नाव रे।।”
“मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो परि सोई।।
साधुन संग बैठि बैठि लोक-लाज खोई।
अब तो बात फैल गई जाने सब कोई।।”
इसे भी देखें- IAS Full Form
Ras In Hindi PDF Download Free With Examples
रस के पुरी detail pdf notes आपको चाहिए तो आप नीचे दिये लिंक पर क्लिक करके download कर लें। यह आपकी आगे आने वाली परीक्षा जैसे, UP RO/ARO, UP ASI, UP SI, UPSSSC, Lekhpal, UPTET जैसे कई परीक्षा मे आपकी मदद करेगा। क्योंक हर परीक्षा मे इससे एक दो प्रश्न जरूर ही बनते है।
Important Ras Questions
- वीभत्स रस का स्थायीभाव है- जुगुप्सा
- रस सिद्धान्त के आदि प्रवर्तक कौन हैं?- भरतमुनि
- आचार्य भरत ने कितने रसों का उल्लेख किया है?- आठ
- काव्यशास्त्र के अनुसार रसों की सही संख्या है- नौ
- संचारी भावो की संख्या है- 33
- स्थायी भावों की संख्या है- 9
- रौद्र रस का स्थायी भाव क्या है?- क्रोध
- विस्मय कौन सा भाव है?- स्थायी
- रसराज किसे कहा जाता है?- श्रृंगार रस को
तो आपको मेरे द्वारा दी गई जानकारी Ras Ke Prakar, Ras Ki Paribhasha, veer ras, bhakti ras, shant ras, hasya ras, shringar ras आदि की जानकारी कैसी लगी नीच कमेंट मे जरूर बताएं तथा इससे संबंधित आपको और जानकारी चाहिए तो नीचे कमेंट करके जरूर पूछे।
Veri nice Post